Friday, October 10, 2008

चार पहर की जिंदगानी

मुझे प्यारी है वह सुबह
जब आसमान गीला होता है
जब धूप सुनहरी होती है
जब मुझे जगाने अम्मा आती है
जब चिडिया की आवाज़ मुझे सताती है
मुझे दोपहर मैं पसंद है
सुने रास्ते जिन पर कोई nahin चल रहा
जब बरगद की छाओं ठंडी लगती है
जब चौकीदार उबासी लेता है
जब माँ थक कर बैठती है
मुझे शाम सुनहरी लगती है
जब मंदीर मैं आरती होती है
जब अम्मा भजन गाती है
जब पापा फोन करते हैं
मुझे सबसे अच्छी लगती है रात
जब खाना परोसा जाता है
जब दादाजी कहानी सुनते हैं
जब हम बातें करते करते सो जाते हें
हो गया दिन पूरा
kal है फिर नई सुबह
फिर नया संकल्प
चल रहा यूँही जीवन का पहिया